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परमजी, पप्र, परमयोग
परमजी, पप्र, परमयोग

परमयोग पीड़ित को आनन्द, बहिष्कृत और निराश को आशा, वीर को साहस, साधक को दोष मुक्तता तथा सिद्ध पुरुष को मुक्ति देता है.

साधना का उद्देश्य:

पंचविकारों – काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार से मुक्ति.

जीवन के चार पुरुषार्थ की प्राप्ति – धर्म, अर्थ, काम, मोक्षानंद.

कर्तापन के अहंकार का तिरोहित हो जाना.

परमात्मा एवं अस्तित्व को कर्ता जानना.

मन पर जिस गुण (रज, तम एवं सत्व) का अधिकार होता है वैसी ही जीव के विचार एवं क्रियाएं होती है. अंतःकरण में गुणों का निर्माण हजारों जन्म में किये गये कर्मों एवं विचारों का संग्रह है जिसे हम संस्कार कहते हैं. प्रभु की शरणागति से पुराने संस्कारों का विलोप होता है एवं स्वस्थ्य संस्कार का निर्माण.

जीवन के चार पुरुषार्थ एवं आनन्द सहज उपलब्ध हो जाते हैं.

जीवन में उत्सव एवं मोक्षानंद का उदय होता है.

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